आज की यात्रा है शिप्रा नदी के किनारे बसे उज्जैनी की !!
यह धरती है महाकाल की !! उज्जैन अपने मंदिरो के लिए सुप्रसिद्ध है। यह शहर मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। भोपाल से १७३ कि. मी. दूर है तथा देश के सभी मुख्य शहरों से रेल और बस द्वारा जुड़ा हुआ है। उज्जैन को उज्जैनी, अवन्ति, अवंतिका तथा अवंतिकापुरी भी कहा जाता है।
आज की यात्रा शुरू होती है उज्जैन जंक्शन के रेलवे स्टेशन से, महाकाल के दर्शनों के लिए यात्री रेल द्वारा उज्जैन पहुँचते है। जैसे ही यात्री रेल गाडी से उतरते है, चारों ओर महाकाल की जय जयकार सुनाई देती है। रेल यात्रा से थके हुए यात्रियों के लिए, रेलवे स्टेशन से निकलते ही कई अच्छे होटल तथा धर्मशालायें है जहाँ यात्री रुक सकते है। उज्जैन में कई प्रसिद्ध मंदिर है जिनकी बड़ी मान्यता है।कहते है यदि बैलगाड़ी भर के अनाज लाया जाये और एक-एक मुठी हर मंदिर में चढ़ाई जाये तो अनाज खत्म हो जायेगा पर उज्जैन में मंदिरों की गिनती खत्म नहीं होगी। उज्जैन घूमने के लिए कम से कम यात्रियों को 2-3 दिन का समय चाहिए। यहाँ के कुछ मुख्य दर्शनीय स्थल इस प्रकार है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
उज्जैन रेलवे स्टेशन से 1.5 कि. मी. की दुरी पर स्थित है महाकाल का प्रसिद्ध मंदिर। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, १२ ज्योतिर्लिंगों में से इकलौता ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिण मुखी है। इसी कारण तांत्रिक विधाओं में इसका विशेष महत्व है। यह एक स्वयंभू शिवलिंग है अर्थात यह स्वयं इस स्थान पे प्रगट हुआ था। यहाँ सुबह की भस्म आरती, भगवान शिव शंकर को उठाने की ऐसी आरती है जिसमे भगवान का श्रृंगार भस्म से किया जाता है। भस्म आरती में हिस्सा लेने के लिए पुरुषो को धोती तथा महिलाओं को साड़ी पहनना अनिवार्ये है। भस्म आरती का दृश्य बहुत मनोरम होता है। इस आरती में शामिल होने के लिए कुछ नियमो का पालन करना अनिवार्य है। अधिक जानकारी तथा नियमों के लिए क्लिक करें भस्म आरती नियम । भस्म आरती में सम्लित होने के लिए पहले से बुकिंग करनी पड़ती है। अधिक जानकारी के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करे Bhasmarti Booking ।
मंदिर प्रांगण में अन्य कई देवी देवताओं के मंदिर भी सुशोभित है। मंदिर के पास रूद्र सागर नामक झील है जिसमे ज्ञान करने का बहुत महत्व बताया जाता है। महाकालेश्वर के मंदिर की तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर का मंदिर है जो साल में केवल एक बार नाग पंचमी के दिन खुलता है।
देवी हरसिद्धि मंदिर
भगवान शंकर ने देवी चंडी को हरसिद्धि का नाम दिया था। ऐसा माना जाता है की दक्ष प्रजापति के यज्ञ कुण्ड से जब भगवान शिव माता सती को ले जा रहे थे तब उज्जैन में स्थित माता हरसिद्धि का मंदिर के इसी पावन स्थान पर सटी देवी की कोहनी गिरी थी। इसलिए इस मंदिर को 51 शक्ति पीठों में गिना जाता है।यह मंदिर अत्यंत जागृत माना जाता है। इस मंदिर में श्री यन्त्र स्थापित है जिस से तांत्रिक परम्परा में इस मंदिर का बहुत महत्व है। माता हरसिद्धि राजा विक्रमादित्य की कुल देवी थी।
ऐसा माना जाता है की यहाँ से पहले माता समुद्र के बीच एक टापू पर सुशोबित थी। राजा विक्रमादित्य माता हरसिद्धि को अपने साथ उज्जैन लाना चाहते थे। इसलिए वह भेंट स्वरुप अपना सिर माता को चढ़ा देते थे तथा माता की कृपा से उनका सिर वापिस आ जाता। विक्रमादित्य ने 11 बार अपना सिर माता के चरणों में भेंट किया। माता उनकी भक्ति से प्रसन्न हुई तथा राजा के साथ उज्जैन जाना स्वीकार किया। देवी हरसिद्धि के मंदिर में स्थित प्रतिमा अत्यंत मनमोहक तथा प्रसन्न मुद्रा में है। यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर से 700 मीटर की दुरी पर स्थित है।
मंगलनाथ मंदिर
भगवान शंकर के अंश से मंगल गृह का जनम इसी स्थान पर हुआ था। कर्क रेखा इसी मंदिर से हो कर जाती है। मंगल गृह का मनुष्य जीवन पर बहुत असर होता है। मंगल गृह की शांति के लिए यहाँ विशेष पूजा होती है। यहाँ चावल से मंगल गृह के पिंड का विशेष अभिषेक व पूजन किया जाता है। यह मंदिर अति प्राचीन है। यहाँ दर्शन कर श्रद्धालु अपने कष्टों से मुक्ति पाते है तथा मंगलमय भविष्य की कामना करते है। यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर से लगभग 5 कि. मी. की दुरी पर स्थित है।
चिंतामन गणेश मंदिर
प्रथम पूजनीय श्री गणपति जी का यह मंदिर सब चिंताओं को दूर करने वाला है। भगवान भोले शंकर ने गणेश जी को वरदान दिया की किसी भी शुभ कार्य का आरम्भ इनके पूजन के बिना नहीं होगा। हर शुभ कार्य से पहले इनका आशीर्वाद लेना जरुरी है। उज्जैन के लोग सब मांगलिक कार्यों का शुभारम्भ चिंतामन गणेश के मंदिर से ही करते है। शादी – विवाह का प्रथम निमंत्रण भी चिंतामन गणेश के चरणो में शादी का कार्ड रख कर किया जाता है। श्रद्धालु यहाँ सुखी वैवाहिक जीवन की कामनाएं मांगते है तथा आशीर्वाद प्राप्त करते है। लोग यहाँ मन्नत के धागे बांधते है तथा मनोकामना पूर्ण होने पर फिर से यहाँ दर्शन करने आते है और पूजा करते है।
अभी उज्जैन के और भी कई मंदिरों की यात्रा बाकी है…. आज के लिए इतना है.. अगले पोस्ट में दर्शन करेंगे काल भैरव मंदिर तथा संदीपन आश्रम के !!आज के लिए इतना ही.. शेष अगले भाग में … तब तक अपना ख्याल रखिये……!!
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